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Showing posts from September 23, 2009

लो क सं घ र्ष !: या आंखों को दे दो भाषा....

सागर को संयम दे दो , या पूरी कर दो आशा । भाषा को आँखें दे दो , या आंखों को दे दो भाषा ॥ तम तोम बहुत गहरा है , उसमें कोमलता भर दो । या फिर प्रकाश कर में , थोडी श्यामलता भर दो ॥ अति दीन हीन सी काया , संबंधो की होती जाए । काया को कंचन कर दो , परिरम्भ लुटाती जाए ॥ डॉक्टर यशवीर सिंह चंदेल " राही "

संपादकीय -- भ्रष्टाचार रोकने के प्रति सरकारें ही गंभीर नहीं

सरकारी व्यवस्था में भ्रष्टाचार का घुन कुछ इस तरह लग चुका है कि इसे रोकने के सारे उपाय निष्फल होते रहे हैं। भ्रष्टाचार रोकने के लिए गठित केंद्रीय सतर्कता आयोग जैसी शीर्ष संस्थाओं की सिफारिशों को जैसे नजरअंदाज किया जाता रहा है, उससे यह मानने में कोई विवाद नहीं है कि सरकार ही भ्रष्टाचार रोकने के प्रति गंभीर नहीं है। ऐसे में केंद्रीय कानून मंत्री वीरप्पा मोइली का यह कथन कुछ आशा जगाता है कि केंद्रीय सतर्कता आयुक्त की सिफारिशों को सरकार के लिए बंधनकारी बनाने की जरूरत है तथा प्रधानमंत्री भी इस दिशा में गंभीर हैं। केंद्रीय सतर्कता आयोग का गठन 1964 में किया गया और 2003 में विशेष कानून बनाकर इसे नया रूप दिया गया। इसी के समानांतर राज्यों में भी लोकायुक्त जैसी संस्थाओं को अस्तित्व में लाया गया। आधी सदी के बाद इन संस्थाओं के कामकाज पर निगाह डालें तो साफ हो जाता है कि भ्रष्टाचार को रोकने में इनकी भूमिका नगण्य रही है। दरअसल इन संस्थाओं को भ्रष्टाचार के मामलों की जांच कर कार्रवाई करने की सिफारिश करने का अधिकार दिया गया है। यह बात उठती रही है कि जब तक ये सिफारिशें सरकार के लिए बंधनकारी नहीं होंगी, तब

स्मृति गीत- पितृव्य हमारे नहीं रहे.... -आचार्य संजीव 'सलिल'

स्मृति गीत- आचार्य संजीव 'सलिल' पितृव्य हमारे नहीं रहे.... * वे आसमान की छाया थे. वे बरगद सी दृढ़ काया थे. थे- पूर्वजन्म के पुण्य फलित वे, अनुशासन मन भाया थे. नव स्वार्थवृत्ति लख लगता है भवितव्य हमारे नहीं रहे. पितृव्य हमारे नहीं रहे.... * वे हर को नर का वन्दन थे. वे ऊर्जामय स्पंदन थे. थे संकल्पों के धनी-धुनी- वे आशा का नंदन वन थे. युग परवशता पर दृढ़ प्रहार. गंतव्य हमारे नहीं रहे. पितृव्य हमारे नहीं रहे.... * वे शिव-स्तुति का उच्चारण. वे राम-नाम भव-भय तारण. वे शांति-पति वे कर्मव्रती. वे शुभ मूल्यों के पारायण. परसेवा के अपनेपन के मंतव्य हमारे नहीं रहे. पितृव्य हमारे नहीं रहे.... *