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Showing posts from March 28, 2010

महिला आरक्षण पर मुलायम की सीटी

नेताजी को लगता है कि महिला आरक्षण के बाद संसद में ऐसी महिलाएं आएंगी जिन्हें देखकर लोग (जाहिर है बात संसद की हो रही है तो सांसद) सीटी बजाएंगे। एक प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और केंद्रीय सरकार में देश की रक्षा की जिम्मेदारी संभाल चुके मुलायम सिंह यादव सरीखे नेता के इस आपत्तिजनक बयान को सुनकर सबसे पहले एक ही सवाल जेहन में आया। अगर ऐसा है तो थोड़े दिनों पहले तक फिरोजाबाद के गली कूचे में घूम घूमकर लोगों से वोट मांगता पूरा यादव परिवार अपनी बहू डिंपल यादव को संसद तक पहुंचाने का ख्वाब क्यों देख रहा था, क्या वाकई फिरोजाबाद की सांसदी, राज बब्बर से 85000 वोटों से हारने के बाद यादव परिवार ने घर में खुशियां मनाईं होंगी कि चलो अच्छा हुआ घर की इज्जत घर में ही रह गई। वाकई शर्म आती है इस देश के मुलायम सरीखे नेताओं पर, रोना आता है इनकी राजनीति पर और अफसोस होता है इनकी उस सोच पर जो विकास के पथ पर सरपट दौड़ते देश की टांगें खींचकर उसे पीछे ले जाने पर तुली है। मुलायम के कद के किसी भी नेता ने इस देश में आज तक सार्वजनिक मंच से महिलाओं की इतनी बेइज्जती इससे पहले कभी नहीं की। और इसमें कोई शक नहीं कि ऐसा इसलि

निबंध प्रतियोगिता 2010.

''कलम का सिपाही'' कविता प्रतियोगिता के बाद हिन्दुस्तान का दर्द आपके लिए लेकर आया है निबंध प्रतियोगिता 2010 . इस प्रतियोगिता का मकसद भी होगा हिंदी की सेवा,दोस्तों हिंदी की रक्षा करना हर हिन्दुस्तानी का फर्ज है और हिंदी की रक्षा करना मतलब खुद पर गर्व करना है,तो दोस्तों खुद पर गर्व करो और हिंदी की रक्षा करो..तब तक हिंदी बोलो जब तक कोई आपकी बात सुनने पर मजबूर न हो जाए,उसके सामने हिंदी बोलो जो हिंदी को छोटा मानता है. आइये बात करते है प्रतियोगिता की. निबंध प्रतियोगिता 2010 के अंतर्गत सभी हिंदी प्रेमी भाग ले सकते है उम्र का कोई बंधन नहीं है. तो नीचे दिए गए किसी एक विषय पर आप अपना निबंध हम तक पहुंचा सकते है. १.सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक मुद्द २.  मनोरंजन संस्कृति और साहित्य ३.खेल ४.स्वास्थ्य ५.आतंकवाद और निदान पुरूस्कार राशि  इस प्रतियोगिता के अंतर्गत कुल 5500 /-के पुरस्कार बांटे जायेंगे  यह पुरस्कार प्रत्येक विषय के आधार पर दिए जायेंगे मतलब हर विषय का एक विजेता होगा जिसे 1100 /-रुपए की नगद राशि से सम्मानित किया जायेगा. अगर आगे चलकर कोई और पुरूस्कार देना च

लो क सं घ र्ष !: अल्लाह के घर महफ़ूज़ नहीं हैं

महफ़ूज़ नहीं घर बन्दों के, अल्लाह के घर महफूज़ नहीं। इस आग और खून की होली में, अब कोई बशर महफ़ूज़ नहीं॥ शोलों की तपिश बढ़ते-बढ़ते, हर आँगन तक आ पहुंची है। अब फूल झुलसते जाते हैं, पेड़ों के शजर महफ़ूज़ नहीं॥ कल तक थी सुकूँ जिन शहरों में, वह मौत की दस्तक सुनते हैं । हर रोज धमाके होते हैं, अब कोई नगर महफ़ूज़ नहीं॥ दिन-रात भड़कती दोजख में, जिस्मों का ईधन पड़ता है॥ क्या जिक्र हो, आम इंसानों का, खुद फितना गर महफ़ूज़ नहीं॥ आबाद मकां इक लमहे में, वीरान खंडर बन जाते हैं। दीवारों-दर महफ़ूज़ नहीं, और जैद-ओ-बकर महफ़ूज़ नहीं॥ शमशान बने कूचे गलियां, हर सिम्त मची है आहो फुगाँ । फ़रियाद है माओं बहनों की, अब लख्ते-जिगर महफ़ूज़ नहीं ॥ इंसान को डर इंसानों से, इंसान नुमा हैवानों से। महफूज़ नहीं सर पर शिमले, शिमलों में सर महफूज़ नहीं॥ महंगा हो अगर आटा अर्शी, और खुदकश जैकेट सस्ती हो, फिर मौत का भंगड़ा होता है, फिर कोई बशर महफ़ूज़ नहीं॥ -इरशाद 'अर्शी' मलिक पकिस्तान के रावलपिंडी से प्रकाशित चहारसू ( मार्च - अप्रैल अंक 2010 ) से श्री गुलज़ार जावेद की अनुमति से उक्त कविता यहाँ प्रका