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Showing posts from December 29, 2008

एक हादसा...अंतिम सफर

कुलवंत हैप्पी जिन्दगी कब खत्म हो जाए, किसकी पता नहीं चलता। हम खुद नहीं जानते के अगले पल क्या होने वाला है. एक यात्रा पर निकले मुसाफिर को पता नहीं होता कि वो घर लौटेगा कि नहीं, कहीं यह यात्रा उसकी अंतिम यात्रा तो नहीं. बस मौत के खौफ मन को मन से निकालकर अपनी मंजिल की तरफ बढ़ते हैं. ये सही भी है और होना भी चाहिए क्योंकि अगर हम मौत के भय से रुक जाएंगे, मंजिल को पाना तो क्या एक कदम भी नहीं उठा सकेंगे. जैसे सांसों की रेलगाड़ी कब कहां रुक जाए किसकी को नहीं पता होता, वैसे ही इस अज्ञात महिला को भी नहीं था कि जिन्दगी की रेल रुकने वाली है. उसकी गोद में खेलने वाली बच्ची के सिर से मां का साया उठने वाला है, उसको इस जहान से विदा लेकर अकेली को जाना है, कहते हैं ना, अंत समय कोई साथ नहीं जाता, कुछ इस तरह ही हुआ इस अज्ञात महिला के साथ. अपनी एक साल की मासूम कली को लेकर रेल में सफर कर रही थी वो, बच्ची ने रोना शुरू किया तो उसने बच्ची को गोद में लिया और दरवाजे की तरफ चली आई. उसने बच्ची को चुप करवाने के लिए एक मां की हैसियत से सब कुछ किया. मगर उस महिला को भी नहीं पता था कि यह बच्ची क्यों रो रही है, शायद उस मा