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सारांश यहाँ आगे पढ़ें के आगे यहाँ
कुछ दिनों से मुझको भी ||
यारो कुछ कुछ होने लगा ||
दिल मेरा भी खोने लगा ||
अपने दफ्तर की टेबल पर ||
मै भी अब तो सोने लगा || 
दिल मेरा भी खोने लगा ||

रात हसीना एक आती है ||
सपनो में हमें जगाती है ||
हाथ पकड़ कर मेरा ओ ||
अपने साथ उड़ाती है ||
इश्क के चक्कर में पड़ कर मै ||
प्रेम बीज को बोने लगा ||
दिल मेरा भी खोने लगा ||
अभी गाल में पड़े निशान है ||
उसने हंस के काटा था ||
मेरी भी चीख निकल गयी थी ||
कुछ करने के लिए आमादा था ||
प्रेम बाग़ में दोनों नाचे थे ||
उसके बिन अब रोने लगा ||
दिल मेरा भी खोने लगा ||

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केहि कारण पान फुलात नही॥? केहि कारण पीपल डोलत पाती॥? केहि कारण गुलर गुप्त फूले ॥? केहि कारण धूल उडावत हाथी॥? मुनि श्राप से पान फुलात नही॥ मुनि वास से पीपल डोलत पाती॥ धन लोभ से गुलर गुप्त फूले ॥ हरी के पग को है ढुधत हाथी..

ग़ज़ल

गज़ब का हुस्नो शबाब देखा ज़मीन पर माहताब देखा खिजां रसीदा चमन में अक्सर खिला-खिला सा गुलाब देखा किसी के रुख पर परीशान गेसू किसी के रुख पर नकाब देखा वो आए मिलने यकीन कर लूँ की मेरी आँखों ने खवाब देखा न देखू रोजे हिसाब या रब ज़मीन पर जितना अजाब देखा मिलेगा इन्साफ कैसे " अलीम" सदकतों पर नकाब देखा