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vimarsh: nyaypalika men sendh -sanjiv

विमर्श 
: भारतीय न्यायपालिका में राजनीति की सेंध : 
स्वतन्त्रता दिवस के हर्षोल्लास में भारत के लोकतंत्र के सर्वाधिक सदृश और विश्वासपात्र स्तंभ न्यायपालिका की नींव में राजनीती की सेंध लगाने की और लोगों का ध्यान नहीं जा पाया। 
माननीय न्यायाधीशों की नियुक्ति के संबंध में कॉलेजियन प्रणाली को समाप्त कर नयी प्रणाली को लाने के लिये बिल संसद में बिना विशेष बहस के लगभग सर्व सम्मति से पास कर दिया गया. 
भारतीय संसद में सिवाय भाटी और सुविधाएँ बढ़ाने के  दलों और नेताओं में कभी किसी बिंदु पर मतैक्य नहीं होता। न्यायिक सक्रियता के कारण सभी दलों के नेताओं को पिछले दिनों कटघरे में पहुँचाना पड़ा। जनता को हार्दिक प्रसन्नता हुई किन्तु नेताओं के मन में न्यायाधीशों के प्रति कटुता पल गयी. कॉग्रेस कसमसाती रही किन्तु न्यायपालिका को छेड़ने की हिम्मत नहीं कर सकी. 
गत आम चुनाव में बी.जे.पी. को मिले जनमत का श्रेय मोदी जी को दिए जाने और मोदी जी की दबंग व्यक्तित्व के कारण विरोधी दल राजनैतिक विरोध के दमन किये जाने को लेकर आशंकित हैं. इस कारण लालू और नीतीश जैसे धुर विरोधी भी गले मिले हैं. न्यायपालिका के प्रति खटास इतनी प्रबल है कि आपसी द्वेष भूलकर केर-बेर संग आ गए. 
नयी प्रणाली में नए न्यायाधीशों को चुनने के लिए बनायी गयी समिति में राजनैतिक लोसो का बहुमत है. न्यायाधीश अल्पमत में हैं  दबाब भी होता ही है. एक बार सत्ताधारी दल अपने समर्थक न्यायधीश बना पाया तो फिर न्यायाधीश भी उसके ही होंगे और इस तरह न्यायपालिका सत्ताधारी दल की जेब में होगी। 
यह लोकतंत्र के लिए सबसे बड़ा खतरा है. इस प्रावधान के विविध पक्षों पर विचार बिना अति शीघ्रता से बिल को पास करना शंका को पुष्ट करता है. यहाँ तह की प्रेस भी इस बिंदु पर मौन है। वर्तमान प्तमुख न्यायाधीश की राय की पूरी तरह अनदेखी भविष्य की दृश्य दिखा रही है. विरोही दलों पर जब बिजली गिरेगी वे तभी चेतेगें किन्तु पत्रकारों और वकीलों को जनमंच पर इस प्रसंग के विविध पहलू और खतरे सामने लेन चाहिए ताकि प्रबल जनमत से सरकार समिति में राजनीतिक लोगों की संख्या घटा कर न्यायपालिका और बार के सदस्य बढ़ाये ताकि सत्ताधारी दाल के लिए मनमानी करने का अवसर न रहे. 
इस महत्वपूर्ण विषय पर विविध पहलुओं से विचार जरूरी है.      
facebook: sahiyta salila / sanjiv verma 'salil' 

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