गज़ब का हुस्नो शबाब देखा ज़मीन पर माहताब देखा खिजां रसीदा चमन में अक्सर खिला-खिला सा गुलाब देखा किसी के रुख पर परीशान गेसू किसी के रुख पर नकाब देखा वो आए मिलने यकीन कर लूँ की मेरी आँखों ने खवाब देखा न देखू रोजे हिसाब या रब ज़मीन पर जितना अजाब देखा मिलेगा इन्साफ कैसे " अलीम" सदकतों पर नकाब देखा
न्यायपालिका की कार्य प्रणाली पर सवालियां निशान तो पहले से ही खड़े हुए हें, आज देश में करोड़ों की संख्या में मामले लंबित पड़े हुए hain . इसका कोई bhi hal khojane के liye pahal honi चाहिए लेकिन इसके लिए कौन से कदम और कैसे उठाये जा सकते हें. कितने जेल में सद रहे हें क्योंकि अभी तक उनकी सुनवाई ही शुरू नहीं हो पाई है और अपराधी बल्कि जाने माने अपराधियों के मामले कभी खुलते ही नहीं हें. राजस्थान न्यायालय में ये केस हो सकता है कि पहली बार संज्ञान में आ रहा हो लेकिन इस देरी और अन्याय के चलाते कितने लोग नैराश्य में डूब कर घर में आत्महत्या कर लेते हें या phir gumnami ka jeevan jeene के लिए majaboor हो jate हैं.
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