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सैनिक देश के..

मै डटा रहा था मोहड़े पर॥
लेकर पूरी लश्कर को॥
आंच न आने देता था॥
अपने प्यारे चमन को॥
कोई चिंगारी भेद न पाती॥
न घबराते सैनिक साथी॥
आत्म बल से भरे हुए थे॥
कभी हटाते नहीं थे छाती॥
मिटना सीखा देश के खातिर॥
आन मान का ख्याल किया था॥
अपने प्यारे देश के खातिर॥
हमने भी तो बलि दिया था॥

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ग़ज़ल

गज़ब का हुस्नो शबाब देखा ज़मीन पर माहताब देखा खिजां रसीदा चमन में अक्सर खिला-खिला सा गुलाब देखा किसी के रुख पर परीशान गेसू किसी के रुख पर नकाब देखा वो आए मिलने यकीन कर लूँ की मेरी आँखों ने खवाब देखा न देखू रोजे हिसाब या रब ज़मीन पर जितना अजाब देखा मिलेगा इन्साफ कैसे " अलीम" सदकतों पर नकाब देखा