कला बाज़ार: समाज के स्थापित मूल्यों से बार-बार टकराता उपन्यास: पुस्तक समीक्षा - बद्री नाथ वर्मा ' कला बाजार ' जैसा कि नाम से ही आभास होता है कि कला आज पूरी तरह से बाजार की जकड़ में आ गयी है। वह पूरी ...
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आपके पोस्ट पर आना बहुत बढ़िया लगा ! मेर नए पोस्ट पर आपका स्वागत है । बेहतरीन प्रस्तुति । धन्यवाद ।
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