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अब तो सच से दर लगता है...

सच कहने से पता नहीं क्यों॥
उछल कूद मच जाती है॥
शांत मौन हो बैठ जाते है...
बुराई हमें रुलाती है॥
हैरत अंगेज करिश्मे होते॥
ताली सभी बजाते है॥
बेईमानो के साथ खड़े हो॥
हाथ सभी उठाते है॥
बुरे लोगो के साथ हमेशा॥
परछाई भी मुस्काती है॥

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हाथी धूल क्यो उडाती है?

केहि कारण पान फुलात नही॥? केहि कारण पीपल डोलत पाती॥? केहि कारण गुलर गुप्त फूले ॥? केहि कारण धूल उडावत हाथी॥? मुनि श्राप से पान फुलात नही॥ मुनि वास से पीपल डोलत पाती॥ धन लोभ से गुलर गुप्त फूले ॥ हरी के पग को है ढुधत हाथी..

ग़ज़ल

गज़ब का हुस्नो शबाब देखा ज़मीन पर माहताब देखा खिजां रसीदा चमन में अक्सर खिला-खिला सा गुलाब देखा किसी के रुख पर परीशान गेसू किसी के रुख पर नकाब देखा वो आए मिलने यकीन कर लूँ की मेरी आँखों ने खवाब देखा न देखू रोजे हिसाब या रब ज़मीन पर जितना अजाब देखा मिलेगा इन्साफ कैसे " अलीम" सदकतों पर नकाब देखा