मै प्रेम जताने कैसे जाता॥
उस प्रेम गली में कंकड़ रहते॥
हंसते थे मुझको देख वे॥
ब्यंग बाण की बानी कसते॥
वो खड़ी महल के छत पर थी॥
जब मैंने इशारा उसे किया था॥
समझ न पाए वह मुझको ॥
मै उपहार जो भेट किया था॥
मै जब राह को जाने लगता॥
हट जा कुछ यूं कहने लगते..
उस प्रेम गली में कंकड़ रहते॥
हंसते थे मुझको देख वे॥
ब्यंग बाण की बानी कसते॥
वो खड़ी महल के छत पर थी॥
जब मैंने इशारा उसे किया था॥
समझ न पाए वह मुझको ॥
मै उपहार जो भेट किया था॥
मै जब राह को जाने लगता॥
हट जा कुछ यूं कहने लगते..
Comments
Post a Comment
आपका बहुत - बहुत शुक्रिया जो आप यहाँ आए और अपनी राय दी,हम आपसे आशा करते है की आप आगे भी अपनी राय से हमे अवगत कराते रहेंगे!!
--- संजय सेन सागर