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प्रेम जताने कैसे जाता..

मै प्रेम जताने कैसे जाता॥
उस प्रेम गली में कंकड़ रहते॥
हंसते थे मुझको देख वे॥
ब्यंग बाण की बानी कसते॥
वो खड़ी महल के छत पर थी॥
जब मैंने इशारा उसे किया था॥
समझ न पाए वह मुझको ॥
मै उपहार जो भेट किया था॥
मै जब राह को जाने लगता॥
हट जा कुछ यूं कहने लगते..

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ग़ज़ल

गज़ब का हुस्नो शबाब देखा ज़मीन पर माहताब देखा खिजां रसीदा चमन में अक्सर खिला-खिला सा गुलाब देखा किसी के रुख पर परीशान गेसू किसी के रुख पर नकाब देखा वो आए मिलने यकीन कर लूँ की मेरी आँखों ने खवाब देखा न देखू रोजे हिसाब या रब ज़मीन पर जितना अजाब देखा मिलेगा इन्साफ कैसे " अलीम" सदकतों पर नकाब देखा