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संस्‍कृतजगत् पर अबतक प्रकाशित प्रशिक्षण कक्ष्‍याएँ



प्रिय संस्‍कृतशिक्षार्थी गण
जैसा कि आप सभी को पता है, संस्‍कृत को सरलतम विधि से सीखने के लिये संस्‍कृतजगत् द्वारा नया पाठ्यक्रम तैयार किया गया है जिसके कुछ पाठ प्रकाशित भी किये जा चुके हैं ।  ये पाठ प्रारम्‍भ से अंत तक संस्‍कृत के आवश्‍यक बिन्‍दुओं को सरलतम विधि से आपके समक्ष प्रस्‍तुत करते हैं ताकि आप संस्‍कृत को बिना किसी अन्‍य की सहायता के सीख सकें ।  
     इनके अब तक प्रकाशित किये गये अध्‍यायों की श्रृंखला यहाँ नीचे प्रस्‍तुत कर रहा हूँ जिसकी सहायता से संस्‍कृतप्रशिक्षण कक्ष्‍या के नये शिक्षार्थी औरों के साथ पहूँच सकेंगे ।  तथा जिन्‍होने बीच में अध्‍ययन छोड दिया था उन्‍हे भी छूटे हुए पाठ प्राप्‍त हो सकेंगे ।

संस्‍कृत प्रशिक्षणकक्ष्‍या के अब तक के प्रकाशित पाठ

भूतकाल (परफेक्‍ट कान्टिन्‍युअस टेन्‍स)

भूतकाल (परफेक्‍ट टेन्‍स)

भूतकाल (कान्टिन्‍युअस टेन्‍स)

भूतकाल (इन‍डेफिनिट टेन्‍स)

वर्तमानकाल (परफेक्‍टकान्टिन्‍युअस टेन्‍स)

वर्तमानकाल (परफेक्‍ट टेन्‍स)

वर्तमानकाल (कान्टिन्‍युअस टेन्‍स)

वर्तमानकाल (इनडेफिनिट टेन्‍स)



कारक विभक्ति

माहेश्‍वसूत्र


किसी अन्‍य असुविधा अथवा प्रश्‍न (समस्‍या) हेतु आप कभी भी संपर्क कर सकते हैं ।

धन्‍यवाद

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ग़ज़ल

गज़ब का हुस्नो शबाब देखा ज़मीन पर माहताब देखा खिजां रसीदा चमन में अक्सर खिला-खिला सा गुलाब देखा किसी के रुख पर परीशान गेसू किसी के रुख पर नकाब देखा वो आए मिलने यकीन कर लूँ की मेरी आँखों ने खवाब देखा न देखू रोजे हिसाब या रब ज़मीन पर जितना अजाब देखा मिलेगा इन्साफ कैसे " अलीम" सदकतों पर नकाब देखा