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नव वसन्त तब ही महकेगा.


नव वसन्त
                            

बच्चे हैं  भारत  का गौरव
कितना भरा है इनमें शौरभ
मन्द-मन्द ये करते कलरव
कल को  बन जायेंगे पौरव.


ये हैं भारत भाग्य विधाता
भेदभाव इनको ना आता
इतने बच्चे एक अहाता
एक गान हर बच्चा गाता.


पढ़े  न कोई  भारत दर्शन
बच्चों के ही कर ले दर्शन
इनमें छुपे सुभाष और वर्मन
इनमें  ही  हैं गान्धी सरवन.


जहां-जहां है इनका पहरा
स्नेह मिलेगा वहीं पै गहरा
चांद भी देखन को है ठहरा
चरण-स्पर्श को सागर लहरा.


 कैसे  हम  नव-वसन्त मनाएं
जब बच्चे भूखे सो जाएं
कागज  बीने रोटी खाएं
फुटपाथों पर रात बिताएं.


आओ इनको गले लगाकर 
इनके कष्टों को अपनाकर
सबको ही शिक्षा दिलवाकर
इन्हें बनायें हम रत्नाकर.


घर-घर स्वत: रंग बिखरेगा
भारत  सोता हुआ जगेगा
अन्धकार  भी दूर  भगेगा
नव वसन्त तब ही महकेगा.

Comments

  1. खूबसूरत और भावमयी प्रस्तुति के लिए धन्यवाद|

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  2. सही है ,बच्चे तो देश के भविष्य हैं

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  3. घर-घर स्वत: रंग बिखरेगा
    भारत सोता हुआ जगेगा
    अन्धकार भी दूर भगेगा
    नव वसन्त तब ही महकेगा.....

    बहुत सुन्दर भावपूर्ण अभिव्यक्ति......

    ReplyDelete

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आपका बहुत - बहुत शुक्रिया जो आप यहाँ आए और अपनी राय दी,हम आपसे आशा करते है की आप आगे भी अपनी राय से हमे अवगत कराते रहेंगे!!
--- संजय सेन सागर

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