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दैनिक जनवाणी में आपका स्वागत है

दैनिक जनवाणी में आपका स्वागत हैदैनिक जनवाणी मेरठ से प्रकाषित होने वाला प्रमुख अखबार है। अखबार में आपका स्वागत है। अखबार के लिए आप अपने आलेख, कविता, गजल, कहानी और लघु कथा आदि भेज सकते हैं। हमारा एक काॅलम वे पढ़ रहें हैं इस काॅलम के लिए आप हमें आजकल किस साहित्यकार की पुस्तक पढ़ रहे हैं। उस पुस्तक में क्या नया है। क्यों पढ़ रहे हैं आदि लिखकर भेज सकते हैं। दूसरा काॅलम जो न पढ़ सका है इस काॅलम के लिए आप हमें उस पुस्तक के बारे में लिख कर भेज सकते हैं, जो आप पढ़ नहीं सके। क्यों नहीं पढ़ सके। क्या मजबूरी रही। क्यों पढ़ना चाहते थे। मलाल एक काॅलम है। इस काॅलम में आप लिख सकते हैं कि जिंदगी में आप को किस बात का मलाल रहा। इनके अलावा एक काॅलम सुकून का दिन है। आप अपना कौनसा दिन सुकून के साथ किस तरह बिताते हैं, इसके बारे में अपने अनुभव भेज सकते हैं। षब्द सीमा 500-600 तक हो। साथ में अपनी पासपोर्ट साइज फोटो भेजना मत भूलिएगा सलीम अख्तर सिद्दीकीदैनिक जनवाणी में आपका स्वागत हैदैनिक जनवाणी मेरठ से प्रकाषित होने वाला प्रमुख अखबार है। अखबार में आपका स्वागत है। अखबार के लिए आप अपने आलेख, कविता, गजल, कहानी और लघु कथा आदि भेज सकते हैं। हमारा एक काॅलम वे पढ़ रहें हैं इस काॅलम के लिए आप हमें आजकल किस साहित्यकार की पुस्तक पढ़ रहे हैं। उस पुस्तक में क्या नया है। क्यों पढ़ रहे हैं आदि लिखकर भेज सकते हैं। दूसरा काॅलम जो न पढ़ सका है इस काॅलम के लिए आप हमें उस पुस्तक के बारे में लिख कर भेज सकते हैं, जो आप पढ़ नहीं सके। क्यों नहीं पढ़ सके। क्या मजबूरी रही। क्यों पढ़ना चाहते थे। मलाल एक काॅलम है। इस काॅलम में आप लिख सकते हैं कि जिंदगी में आप को किस बात का मलाल रहा। इनके अलावा एक काॅलम सुकून का दिन है। आप अपना कौनसा दिन सुकून के साथ किस तरह बिताते हैं, इसके बारे में अपने अनुभव भेज सकते हैं। षब्द सीमा 500-600 तक हो। साथ में अपनी पासपोर्ट साइज फोटो भेजना मत भूलिएगा
सलीम अख्तर 09045582472

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आपका बहुत - बहुत शुक्रिया जो आप यहाँ आए और अपनी राय दी,हम आपसे आशा करते है की आप आगे भी अपनी राय से हमे अवगत कराते रहेंगे!!
--- संजय सेन सागर

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हाथी धूल क्यो उडाती है?

केहि कारण पान फुलात नही॥? केहि कारण पीपल डोलत पाती॥? केहि कारण गुलर गुप्त फूले ॥? केहि कारण धूल उडावत हाथी॥? मुनि श्राप से पान फुलात नही॥ मुनि वास से पीपल डोलत पाती॥ धन लोभ से गुलर गुप्त फूले ॥ हरी के पग को है ढुधत हाथी..

ग़ज़ल

गज़ब का हुस्नो शबाब देखा ज़मीन पर माहताब देखा खिजां रसीदा चमन में अक्सर खिला-खिला सा गुलाब देखा किसी के रुख पर परीशान गेसू किसी के रुख पर नकाब देखा वो आए मिलने यकीन कर लूँ की मेरी आँखों ने खवाब देखा न देखू रोजे हिसाब या रब ज़मीन पर जितना अजाब देखा मिलेगा इन्साफ कैसे " अलीम" सदकतों पर नकाब देखा