
लोग रूठ जाते हैं मुझसे ,
और मुझे मनाना नहीं आता !
मैं चाहती हूँ क्या ?
मुझे जताना नहीं आता !
आँसुओं को पीना पुरानी आदत है ,
.मुझे आंसू बहाना नहीं आता !
लोग कहते हैं मेरा दिल है पत्थर का ,
इसलिए इसको पिघलाना नहीं आता !
अब क्या कहूँ मैं............
क्या आता है, क्या नहीं आता !
बस मुझे मौसम की तरह ,
बार - बार बदल जाना नहीं आता !
अब क्या करे कीससे कहें हम ,
हमे तो किसी भी तरह मनाना नहीं आता !
बहुत सुंदर और उत्तम भाव लिए हुए.... खूबसूरत रचना......
ReplyDeletemanane ka yah andaj bhi anokha hai ki yah kahna ki hume to manana hi nahi aata .bahut khoob .
ReplyDeleteबेहद खूबसूरत रचना…………पसन्द आयी।
ReplyDeleteअच्छे भाव हैं.....
ReplyDeleteशुक्रिया दोस्तों !
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