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मनन...डा श्याम गुप्त...



       मनन

“यदा वै मनुत, अथ विजानाति । नामत्वा विजानाति । मत्वैव विजानाति । मतिस त्येव विजिज्ञासित व्येति । मतिं भगवो   विजिज्ञासे इति ॥” –छांदोग्य उपनिषद
 व्यक्ति जब मनन करता है तभी( किसी वस्तु का ) ज्ञान होता है। मनन किये बिना नहीं जान सकता। अतः मनन को जानने की इच्छा करें कि भगवन ! मैं मनन को जानना चाहता हूं।

किसी वस्तु की वास्तविकता व गहराई जानने हेतु उसमें डुबकी लगाना आवश्यक होता है। मनन क्या है , यह भी ठीक प्रकार से जानना चाहिये ।

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--- संजय सेन सागर

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