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खोजो नई राहें



मुझसे ही मंजिल का
                  पता क्यु  पूछते हैं सब ?
एसा करके बदनाम...............
                   मुझे कर देते  हैं सब !
मै तो कोई मंजिल नहीं
               जो दूर तलख जाउंगी !
राह मै छोड़ कर फिर .........
              दूर निकल जाउंगी !
मेरी मंजिल  के तो
             और भी कई राही हैं !
तुम्हें तन्हा फिर .............
             कहाँ तलख ले जाउंगी !
मुझसे यु न लिपटो
            कबसे ये दोहराती हु !
मेरा तो आस्तित्व है वो
           कहाँ छोड़ पाती हु !
मेरी आगोश मै बस
      आह ...... के सिवा कुच्छ भी नहीं  !
तुम्हारी कोई नहीं मै .............
           बस ये जरा ख्याल करो !
और आज ही से .....................
        नई मंजिल की राह तलाश करो ! 

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आपका बहुत - बहुत शुक्रिया जो आप यहाँ आए और अपनी राय दी,हम आपसे आशा करते है की आप आगे भी अपनी राय से हमे अवगत कराते रहेंगे!!
--- संजय सेन सागर

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ग़ज़ल

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