बहुत दिनों से सोये नहीं॥
ये तन बुझा बुझा है॥
मुझे गर्दिशो ने मारा॥
मेरा कसूर क्या है॥
मै जा रहा था पथ पर॥
वह मिल गयी अकेली॥
हांथो में लिए पुष्प थी॥
संग न सहेली॥
मुझसे झिझक के बोली॥
मेरा वजूद क्या है॥
मुझे गर्दिशो ने मारा॥
मेरा कसूर क्या है॥
मेरा कसूर क्या है॥
मैंने उसे समझाया॥
ये पथ बड़ा कंटीला॥
आगे मिलेगे पर्वत॥
पीछे मिलेगा टीला॥
हमने भी हामी भर दी॥
बोले वसूल क्या है॥
मुझे गर्दिशो ने मारा॥
मेरा कसूर क्या है॥
मेरा कसूर क्या है॥
चन्द्र दिनों की खुशिया॥
खाली किया समंदर॥
अब दर दर भटक रहा हूँ॥
खाली लिए कमंडल॥
अब कैसे जिए गे हम यूं॥
बोलो रसूल क्या है॥
मुझे गर्दिशो ने मारा॥
मेरा कसूर क्या है॥
मेरा कसूर क्या है॥
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आपका बहुत - बहुत शुक्रिया जो आप यहाँ आए और अपनी राय दी,हम आपसे आशा करते है की आप आगे भी अपनी राय से हमे अवगत कराते रहेंगे!!
--- संजय सेन सागर