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अनोखी नाव...

वह अचरज की नैया बड़ी अनोखी॥
जो झोड़ गयी मजधार में॥
मै डूब डूब उतरा रहा हूँ॥
मेरा कोई नहीं संसार में॥
मै जैसा जैसाकर्म किया॥
वैसा फल भी पाया हूँ॥
धन दौलत से संपन्न थे॥
दो पुत्र रत्न उपजाया हूँ॥
इस हालत में सारे झोड़ गए॥
मै बिलख रहा बीच धार में॥
मै डूब डूब उतरा रहा हूँ॥
मेरा कोई नहीं संसार में॥
कुछ कर्म हमारे बुरे हुए थे॥
मै उनसे टकराया था॥
लाभ हानि का छोड़ के चक्कर॥
उनको मार गिराया था॥
उस पुन्य पाप को भोग रहा हूँ॥
अब तीर लगा है जान में..

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ग़ज़ल

गज़ब का हुस्नो शबाब देखा ज़मीन पर माहताब देखा खिजां रसीदा चमन में अक्सर खिला-खिला सा गुलाब देखा किसी के रुख पर परीशान गेसू किसी के रुख पर नकाब देखा वो आए मिलने यकीन कर लूँ की मेरी आँखों ने खवाब देखा न देखू रोजे हिसाब या रब ज़मीन पर जितना अजाब देखा मिलेगा इन्साफ कैसे " अलीम" सदकतों पर नकाब देखा