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बेचारा मजदूर...मजबूर होके..


करते करते मेहनत मजदूरी॥

हाथ में घिट्ठे पड़ गए ॥

हम जैसे के जैसे रह गए॥


वही है झप्पर है खाट॥

महा दरिद्र हमरी औकात...

गिरते गिरते बच गए॥

हम जैसे के जैसे रह गए॥

चार है बच्चे किस्मत के कच्चे॥

पढ़ लिख न पाए बने न सच्चे॥

जीवन की धुरी में रच गए॥

हम जैसे के जैसे रह गए॥

देहिया झांझर सन है बाल॥

कोई न पूछे का हवाल॥

गाल में गड्ढे पड़ गए॥

हम जैसे के जैसे रह गए॥


बेचारा मजदूर...मजबूर होके..

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आपका बहुत - बहुत शुक्रिया जो आप यहाँ आए और अपनी राय दी,हम आपसे आशा करते है की आप आगे भी अपनी राय से हमे अवगत कराते रहेंगे!!
--- संजय सेन सागर

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