Skip to main content

मुझको भी घर जाना है...


अब छोडो ओढनिया देर भयी॥

हमको भी घर को जाना है...

पूछेगी घर में मम्मी जब॥

बोलूगी क्या बहाना है॥


बहुत देर बहुत भयी बाते करते॥

मन चंचल हो कुछ पूछ रहा॥

तुम मेरे प्राण अधरे हो॥

ये दिल तुमको बतलाय रहा॥

तेरे ही घर की बतिया अब॥

सातो जनम सजाना है॥


चर्चा गलियों में फ़ैल चुकी ॥

किस किसने नहीं जाना है॥

मैंने भी उस अन्धकार में॥

तुमको ही पहचाना है॥

तुम ही मेरी सुख सम्पाती हो॥

ये दिल ही बड़ा खजाना है...


Comments

Popular posts from this blog

हाथी धूल क्यो उडाती है?

केहि कारण पान फुलात नही॥? केहि कारण पीपल डोलत पाती॥? केहि कारण गुलर गुप्त फूले ॥? केहि कारण धूल उडावत हाथी॥? मुनि श्राप से पान फुलात नही॥ मुनि वास से पीपल डोलत पाती॥ धन लोभ से गुलर गुप्त फूले ॥ हरी के पग को है ढुधत हाथी..

ग़ज़ल

गज़ब का हुस्नो शबाब देखा ज़मीन पर माहताब देखा खिजां रसीदा चमन में अक्सर खिला-खिला सा गुलाब देखा किसी के रुख पर परीशान गेसू किसी के रुख पर नकाब देखा वो आए मिलने यकीन कर लूँ की मेरी आँखों ने खवाब देखा न देखू रोजे हिसाब या रब ज़मीन पर जितना अजाब देखा मिलेगा इन्साफ कैसे " अलीम" सदकतों पर नकाब देखा