Skip to main content

मै कवि नहीं कल्पित अक्षर हूँ॥

मै कवि नहीं कल्पित अक्षर हूँ॥
जो रच रच शब्द खिलाता हूँ॥
बड़े बड़े विद्धवानो से ॥
समय समय बचवाता हूँ॥
मै वीर नहीं विरला अक्षर हूँ॥
जो स्वर से स्वर मिलाता हूँ॥
बड़े बड़े कलाकारों के संग॥
साथ में ठुमका लगाता हूँ॥
मै फूल नहीं फुलझडिया हूँ॥
जो वाया हाथ मिलाता हूँ॥
भगवन के मन मंदिर में॥
मंगल मय बात बताता हूँ॥

Comments

  1. बेहद ख़ूबसूरत और उम्दा

    ReplyDelete
  2. बहुत दिनों बाद इतनी बढ़िया कविता पड़ने को मिली.... गजब का लिखा है

    ReplyDelete

Post a Comment

आपका बहुत - बहुत शुक्रिया जो आप यहाँ आए और अपनी राय दी,हम आपसे आशा करते है की आप आगे भी अपनी राय से हमे अवगत कराते रहेंगे!!
--- संजय सेन सागर

Popular posts from this blog

हाथी धूल क्यो उडाती है?

केहि कारण पान फुलात नही॥? केहि कारण पीपल डोलत पाती॥? केहि कारण गुलर गुप्त फूले ॥? केहि कारण धूल उडावत हाथी॥? मुनि श्राप से पान फुलात नही॥ मुनि वास से पीपल डोलत पाती॥ धन लोभ से गुलर गुप्त फूले ॥ हरी के पग को है ढुधत हाथी..

ग़ज़ल

गज़ब का हुस्नो शबाब देखा ज़मीन पर माहताब देखा खिजां रसीदा चमन में अक्सर खिला-खिला सा गुलाब देखा किसी के रुख पर परीशान गेसू किसी के रुख पर नकाब देखा वो आए मिलने यकीन कर लूँ की मेरी आँखों ने खवाब देखा न देखू रोजे हिसाब या रब ज़मीन पर जितना अजाब देखा मिलेगा इन्साफ कैसे " अलीम" सदकतों पर नकाब देखा