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ये राजनीति की वही है कुर्सी..जो भ्रष्टाचार बुलाती है..


एक कुर्सी मुझे सपने में नज़र आती है॥

बैठने को मन कहता पर आत्मा सकुचाती है॥

ये राजनीति की वही है कुर्सी॥

जो भ्रष्टाचार बुलाती है॥

जो इस कुर्सी पर बैठा सच्चा न कोई उतरा है॥

किसी की चादर साफ़ नहीं है॥

सभी का कुर्ता मैला है॥

खड़े खड़े जनता के हक़ को॥

बीच सभा लुटवाती है॥

ये राजनीति की वही है कुर्सी॥
जो भ्रष्टाचार बुलाती है॥

सम्बन्धी सब मौज उड़ाते॥

गरीब खड़े चिल्लाते है॥

नेता जी तो बड़े निकम्मे ॥

वादा करके भूल जाते है॥

इस कुर्सी के करया बहुत है॥

पर भ्रष्टाचार बदमासी है॥

ये राजनीति की वही है कुर्सी॥जो भ्रष्टाचार बुलाती है॥

इस कुर्सी का मूल्य मंत्र यह॥

सच को कभी मत डिगने दो॥

कडा शाशन कर के रखो॥

बुरी बया मत बहने दो॥

मूक बनी कुर्शी बैठी॥

मन ही मन लजाती है॥

ये राजनीति की वही है कुर्सी॥जो भ्रष्टाचार बुलाती है॥



Comments

  1. आपकी पोस्ट आज चर्चा मंच पर भी है...

    http://charchamanch.blogspot.com/2010/07/217_17.html

    ReplyDelete
  2. अगर लोग अपने तबादले, परमिट, नौकरी या सरकारी पैसे के लिए नेताओं के आगे दुम हिलाने की जगह आपकी तरह उन पर कविता लिखने लगें तो यह देश सही रास्ते पर आ जायेगा...बधाई

    ReplyDelete

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आपका बहुत - बहुत शुक्रिया जो आप यहाँ आए और अपनी राय दी,हम आपसे आशा करते है की आप आगे भी अपनी राय से हमे अवगत कराते रहेंगे!!
--- संजय सेन सागर

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