Skip to main content

मै शमशान का पंडा हूँ...

तुम मेरे जजमान हो॥
मै शमशान का पंडा॥
लाशें यहाँ हमेशा आती॥
यही कर्म मेरा धंधा॥

जवान बेटो की अर्थियो पर॥
माँ बाप के आंसुओ की बूँद होती ॥
पत्थर दिल भी पिघल जाता है॥
जब विधवाए बिलख के रोटी है॥
फिर भी उनको ठगता हूँ॥
बन करके अंधा॥
तुम मेरे जजमान हो॥
मै शमशान का पंडा॥

बहनों की अर्थियो पर ॥
भाइयो की सूनी कलाई॥
माँ की याद में बच्चे॥
भूखे पेट राते बिताई॥
कर्म मेरा प्रधान है॥
पर काला इसका पर्दा॥
तुम मेरे जजमान हो॥
मै शमशान का पंडा॥

बाप की अर्थी लिए बेटा आता है॥
कर्म समझ के क्रिया कर्म करता है॥
पूचता है विधि विधाता के पास जायेगे॥
क्या हमारे कुल में फिर वापस आयेगे।
ग़मगीन दिलो से भी करते है खर्चा॥
तुम मेरे जजमान हो॥
मै शमशान का पंडा॥

Comments

Post a Comment

आपका बहुत - बहुत शुक्रिया जो आप यहाँ आए और अपनी राय दी,हम आपसे आशा करते है की आप आगे भी अपनी राय से हमे अवगत कराते रहेंगे!!
--- संजय सेन सागर

Popular posts from this blog

हाथी धूल क्यो उडाती है?

केहि कारण पान फुलात नही॥? केहि कारण पीपल डोलत पाती॥? केहि कारण गुलर गुप्त फूले ॥? केहि कारण धूल उडावत हाथी॥? मुनि श्राप से पान फुलात नही॥ मुनि वास से पीपल डोलत पाती॥ धन लोभ से गुलर गुप्त फूले ॥ हरी के पग को है ढुधत हाथी..

ग़ज़ल

गज़ब का हुस्नो शबाब देखा ज़मीन पर माहताब देखा खिजां रसीदा चमन में अक्सर खिला-खिला सा गुलाब देखा किसी के रुख पर परीशान गेसू किसी के रुख पर नकाब देखा वो आए मिलने यकीन कर लूँ की मेरी आँखों ने खवाब देखा न देखू रोजे हिसाब या रब ज़मीन पर जितना अजाब देखा मिलेगा इन्साफ कैसे " अलीम" सदकतों पर नकाब देखा