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दूर से..

बहुत दिनों के बाद मिली हो रास्ते में आज॥
वह भी मांग सजाये ,,खूब सिंगार रचाए॥
आँख तुम्हारी बता रही है । ख़ुशी खुसी कटती रतिया॥
ओठ थोड़ा रूखे लगते है॥ सोच सोच मेरी बतिया॥
चाँद की हूर हमें लगती हो॥ देख देख अंखिया शर्माए॥
सदा तुम्हारी गमके बगिया यही मेरी आशीष॥
मै कैसा मुझपर अब छोडो मेरे संग जगदीश॥
अगर कभी दुःख तुमको हो तो उसकी पता हमें चल छाए॥

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हाथी धूल क्यो उडाती है?

केहि कारण पान फुलात नही॥? केहि कारण पीपल डोलत पाती॥? केहि कारण गुलर गुप्त फूले ॥? केहि कारण धूल उडावत हाथी॥? मुनि श्राप से पान फुलात नही॥ मुनि वास से पीपल डोलत पाती॥ धन लोभ से गुलर गुप्त फूले ॥ हरी के पग को है ढुधत हाथी..

ग़ज़ल

गज़ब का हुस्नो शबाब देखा ज़मीन पर माहताब देखा खिजां रसीदा चमन में अक्सर खिला-खिला सा गुलाब देखा किसी के रुख पर परीशान गेसू किसी के रुख पर नकाब देखा वो आए मिलने यकीन कर लूँ की मेरी आँखों ने खवाब देखा न देखू रोजे हिसाब या रब ज़मीन पर जितना अजाब देखा मिलेगा इन्साफ कैसे " अलीम" सदकतों पर नकाब देखा