Skip to main content

कडूयी मुहब्बत क्या है..

आया था यहाँ जीने॥
अब लुट के जा रहा हूँ॥
कडुई मुहब्बत क्या है॥
तुमको बता रहा हूँ॥
चंचल स्वभाव मेरा॥
सब का दुलारा था॥
दादा दादी का पोता॥
मम्मी पापा को प्यारा था॥
कैसे चढ़ी जवानी ॥
उसको बता रहा हूँ॥
आया था यहाँ जीने॥
अब लुट के जा रहा हूँ॥

चढ़ते जवानी मुझको॥
एक पारी मिल गयी॥
अपना भविष्य सवारने ॥
की कड़ी खुल गयी॥
कैसे हुआ था लट्टू ॥
तुमको बता रहा हूँ॥
आया था यहाँ जीने॥
अब लुट के जा रहा हूँ॥
सीचा था मेरे तन को॥
अब मुरझा रहा हूँ॥
उसने मुझे हंसाया॥
अब आंसू गिरा रहा हूँ॥
आया था यहाँ जीने॥
अब लुट के जा रहा हूँ॥
मैंने भी कदम पे चढ़ के॥
बंसी बजाया था॥
उसके ही दिल में अपनी॥
प्रीति जगाया था॥
वह मुझसे बिछड़ गयी।
जो बीती गा रहा हूँ॥
आया था फ़ोन एकदिन॥
वह माँ बन गयी॥
मुझसे बिछड़ के ॥
किसी दूजे को मिल गयी॥
वह कैसी थी तुम बताओ॥
मै तुम्हे बता रहा हूँ॥

Comments

Popular posts from this blog

हाथी धूल क्यो उडाती है?

केहि कारण पान फुलात नही॥? केहि कारण पीपल डोलत पाती॥? केहि कारण गुलर गुप्त फूले ॥? केहि कारण धूल उडावत हाथी॥? मुनि श्राप से पान फुलात नही॥ मुनि वास से पीपल डोलत पाती॥ धन लोभ से गुलर गुप्त फूले ॥ हरी के पग को है ढुधत हाथी..

ग़ज़ल

गज़ब का हुस्नो शबाब देखा ज़मीन पर माहताब देखा खिजां रसीदा चमन में अक्सर खिला-खिला सा गुलाब देखा किसी के रुख पर परीशान गेसू किसी के रुख पर नकाब देखा वो आए मिलने यकीन कर लूँ की मेरी आँखों ने खवाब देखा न देखू रोजे हिसाब या रब ज़मीन पर जितना अजाब देखा मिलेगा इन्साफ कैसे " अलीम" सदकतों पर नकाब देखा