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मै कलुवा पुर का नाई हूँ..

मै गली गली पगडण्डी पर लोगो का बाल बनाता हूँ॥
मै कलुवा पुर का नई हूँ, उंच नीच घर जाता हूँ॥
जहा दान दक्षिणा का मेला देते लोग आशीष है॥
उनकी सेवा में हाज़िर होता मुझको मिलती फीस है॥
जहा में बोली थम जाती है सब उनकी अलख जगाता हूँ॥
मै बोली में बिलकुल माहिर हूँ अच्छो की तेल लगाता हूँ॥
काम को अपने पूज्य समझता चौखट पे हरदम जाता हूँ॥
कभी कभी गुंडों के घर में रस्सी से बांधा जाता हूँ॥
कोई कोई क़द्र न करता मजदूरी नहीं देता॥
मेरी किस्मत में जो धन था उसको छीन भी लेता॥
बड़े नबाबो में घर जा कर ऊचे मूल्य बिकाता हूँ॥

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आपका बहुत - बहुत शुक्रिया जो आप यहाँ आए और अपनी राय दी,हम आपसे आशा करते है की आप आगे भी अपनी राय से हमे अवगत कराते रहेंगे!!
--- संजय सेन सागर

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ग़ज़ल

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