Skip to main content

समय देख ललचाता हूँ..

मै हंसता हूँ अपने पन पर अब॥
जब बचपन में नग्न नहाता था॥
चाची ताई मम्मी अम्मी को॥
हर पल उन्हें खिझाता था॥
हाथ पैर को पटक पटक के॥
धर में उधम मचाता था॥
मुझको चाहिए सेब सनतरे॥
पापा को फरमान सुनाता था॥
मटका फोडू पानी बाला॥
चूल्हे पर धाक जमाता था॥
अगर कोई हिस्से का खाता॥
मुह फाड़ चिल्लाता था॥
कुर्ता फाडू मखमल वाला॥
जिद्दी शिशु कहाता था॥
मेवा मिष्ठान की फरमाइश करता॥
चन्दन तिकल्क लगाता था॥
अपने प्यारे बाबा के संग॥
सुबह मंदिर को जाता था॥
बचपन छूटा झंझट आयी॥
देख समय ललचाता हूँ॥
मै हंसता हूँ अपने पन पर अब॥
जब बचपन में नग्न नहाता था॥
चाची ताई मम्मी अम्मी को॥
हर पल उन्हें खिझाता था॥

Comments

Popular posts from this blog

हाथी धूल क्यो उडाती है?

केहि कारण पान फुलात नही॥? केहि कारण पीपल डोलत पाती॥? केहि कारण गुलर गुप्त फूले ॥? केहि कारण धूल उडावत हाथी॥? मुनि श्राप से पान फुलात नही॥ मुनि वास से पीपल डोलत पाती॥ धन लोभ से गुलर गुप्त फूले ॥ हरी के पग को है ढुधत हाथी..

ग़ज़ल

गज़ब का हुस्नो शबाब देखा ज़मीन पर माहताब देखा खिजां रसीदा चमन में अक्सर खिला-खिला सा गुलाब देखा किसी के रुख पर परीशान गेसू किसी के रुख पर नकाब देखा वो आए मिलने यकीन कर लूँ की मेरी आँखों ने खवाब देखा न देखू रोजे हिसाब या रब ज़मीन पर जितना अजाब देखा मिलेगा इन्साफ कैसे " अलीम" सदकतों पर नकाब देखा