Skip to main content

कैसी घटा निहार रही है..

कैसी घटा निहार रही है॥
अबतो अम्बर टूटेगा॥
धरती के इस मल मूत्र को॥
वर्षा ऋतू अब लूटेगा॥
पग पग पर हरियाली होगी॥
बाग़ में कोयल बोलेगी॥
हर खेतो में धान की कलियाँ॥
पहन के घुघरू डोलेगी ॥
हर किसान के मन के अन्दर॥
खुशिया नहीं समाएगी॥
अब सुहागिन घर मंदिर में॥
बारिश के गीत सुनाएगी॥
जब बुराई को समय का बौडर॥
चलती राह घसीटेगा॥
धरती के इस मल मूत्र को॥
वर्षा ऋतू अब लूटेगा॥
प्यास बुझेगी पशु प्राणी की॥
हर गड्ढो में जल का वास॥
कोई भूखा नहीं मरेगा॥
न डालेगा गले में फांस॥
हर जंगल में मंगल होगा॥
लोरी नानी सुनाएगी॥
घटी कहानी जो रिम-झिम में॥
उसको हमें बताएगी॥
अब दुखियो का दुःख जाएगा॥
ख़ुशी न कोई लूटेगा॥
धरती के इस मल मूत्र को॥
वर्षा ऋतू अब लूटेगा॥

Comments

Popular posts from this blog

हाथी धूल क्यो उडाती है?

केहि कारण पान फुलात नही॥? केहि कारण पीपल डोलत पाती॥? केहि कारण गुलर गुप्त फूले ॥? केहि कारण धूल उडावत हाथी॥? मुनि श्राप से पान फुलात नही॥ मुनि वास से पीपल डोलत पाती॥ धन लोभ से गुलर गुप्त फूले ॥ हरी के पग को है ढुधत हाथी..

ग़ज़ल

गज़ब का हुस्नो शबाब देखा ज़मीन पर माहताब देखा खिजां रसीदा चमन में अक्सर खिला-खिला सा गुलाब देखा किसी के रुख पर परीशान गेसू किसी के रुख पर नकाब देखा वो आए मिलने यकीन कर लूँ की मेरी आँखों ने खवाब देखा न देखू रोजे हिसाब या रब ज़मीन पर जितना अजाब देखा मिलेगा इन्साफ कैसे " अलीम" सदकतों पर नकाब देखा