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मानव..

गम का बोझ लिए।
सुलगती रेट पर ॥
चलता रहा मानव॥
पैर में छाले पड़े ॥
अन्धेरा आँखों में छाया॥
गम का दीप लिए
चलता रहा मानव
संघर्ष की घडी में॥
हिम्मत नहीं छोड़ा॥
इस लिए विपरीत परिस्थतियो से॥
गुज़रता रहा मानव॥
आखिरी समय में कुछ शान्ति मिलनी थी॥
प्राण जाने पर भी जलता रहा ॥
मानव॥

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ग़ज़ल

गज़ब का हुस्नो शबाब देखा ज़मीन पर माहताब देखा खिजां रसीदा चमन में अक्सर खिला-खिला सा गुलाब देखा किसी के रुख पर परीशान गेसू किसी के रुख पर नकाब देखा वो आए मिलने यकीन कर लूँ की मेरी आँखों ने खवाब देखा न देखू रोजे हिसाब या रब ज़मीन पर जितना अजाब देखा मिलेगा इन्साफ कैसे " अलीम" सदकतों पर नकाब देखा