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लो क सं घ र्ष !: ब्लॉग उत्सव 2010

सम्मानीय चिट्ठाकार बन्धुओं,

सादर प्रणाम,


आज दिनांक 05.05.2010 को परिकल्पना ब्लोगोत्सव-२०१० के अंतर्गत प्रकाशित पोस्ट

ब्लोगोत्सव-२०१० : आज देखिये रश्मि प्रभा की आँखों से उत्सव के दृश्य

http://www.parikalpnaa.com/2010/05/blog-post_04.html



आकाश मेरी मुठ्ठी से निकल रहा है : रश्मि प्रभा

http://www.parikalpnaa.com/2010/05/blog-post_3826.html



सीधी बात : अलवेला खत्री से

http://utsav.parikalpnaa.com/2010/05/blog-post_05.html


आज की लाइफ स्टाइल को देखकर लगता है भारत में अमेरिका उतर आया है : सरस्वती प्रसाद

http://www.parikalpnaa.com/2010/05/blog-post_294.html



आज पिज्जा एम्बुलेंस से फास्ट पहुंचता है घर :प्रीती मेहता

http://www.parikalpnaa.com/2010/05/blog-post_05.html



काजल कुमार के सात कार्टून्स

सुनिए सुप्रसिद्ध हास्य कवि श्री अरुण जेमनी की आवाज़ में उनकी हास्य रचनाएँ

सुनिए श्री आश करण अटल के स्वर में उनकी हास्य कविता : आशिक की पिटाई और कवियों की गबाही

ललित शर्मा का व्यंग्य : यम के भैंसासुर का भंडाफ़ोड़--चित्रगुप्त ने लगाया जोड़तोड़

बसंत आर्य की व्यंग्य कविता :आजादी की सुबह

अल्पना वर्मा की पांच कविताएँ

डॉ0 कुमारेन्द्र सिंह सेंगर का आलेख : समाज संचालन में सामाजिक सरोकारों की भूमिका

झूठों के घर पंडित बाँचें, कथा सत्य भगवान की,जय बोलो बेईमान की !

http://www.parikalpnaa.com/2010/05/blog-post_1148.html



आज आपके पास.....विकल्प है..आज आप अपनी लाइफ स्टाइल बना सकते हैं.........

http://www.parikalpnaa.com/2010/05/blog-post_8332.html



लोग छोड़ जाते है रौनके, हम तो शून्य भी साथ ले जाते है !

http://www.parikalpnaa.com/2010/05/blog-post_6009.html



प्यार करना हो तो बिना किसी शर्त के, देना हो तो बिना किसी प्राप्य की उम्मीद के : सुमन सिन्हा


utsav.parikalpnaa.com

अंतरजाल पर परिकल्पना के श्री रविन्द्र प्रभात द्वारा आयोजित ब्लॉग उत्सव 2010 लिंक आप लोगों की सेवा में प्रेषित हैं।

-सुमन
loksangharsha.blogspot.com

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हाथी धूल क्यो उडाती है?

केहि कारण पान फुलात नही॥? केहि कारण पीपल डोलत पाती॥? केहि कारण गुलर गुप्त फूले ॥? केहि कारण धूल उडावत हाथी॥? मुनि श्राप से पान फुलात नही॥ मुनि वास से पीपल डोलत पाती॥ धन लोभ से गुलर गुप्त फूले ॥ हरी के पग को है ढुधत हाथी..

ग़ज़ल

गज़ब का हुस्नो शबाब देखा ज़मीन पर माहताब देखा खिजां रसीदा चमन में अक्सर खिला-खिला सा गुलाब देखा किसी के रुख पर परीशान गेसू किसी के रुख पर नकाब देखा वो आए मिलने यकीन कर लूँ की मेरी आँखों ने खवाब देखा न देखू रोजे हिसाब या रब ज़मीन पर जितना अजाब देखा मिलेगा इन्साफ कैसे " अलीम" सदकतों पर नकाब देखा