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जीवन को छोड़ जाए हम॥

गम का गागर लिए॥
आंसुओ से भरा॥
नाथ तुम ही बताओ॥
कहा जाए हम ॥
मुर्खता है हमारी॥
किया हमसे छल॥
पल पल आंसू ही पीते॥
क्या मर जाए हम॥
भूल मुझसे हुयी॥
गम को झेला भी मै॥
कुरता इतनी करनी ॥
नहीं चाहिए॥
क्या तपोवन में जाके॥
जल जाए हम॥
क्यों विधाता बने हो॥
क्षीर सागर में जा॥
अपनी भक्ति पे एतवार॥
हमको भी है॥
क्या जहर खा के॥
जीवन को छोड़ जाए हम॥

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ग़ज़ल

गज़ब का हुस्नो शबाब देखा ज़मीन पर माहताब देखा खिजां रसीदा चमन में अक्सर खिला-खिला सा गुलाब देखा किसी के रुख पर परीशान गेसू किसी के रुख पर नकाब देखा वो आए मिलने यकीन कर लूँ की मेरी आँखों ने खवाब देखा न देखू रोजे हिसाब या रब ज़मीन पर जितना अजाब देखा मिलेगा इन्साफ कैसे " अलीम" सदकतों पर नकाब देखा