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हंसी केतकी देख कर॥

हंसी केतकी देख कर॥
हंसमुख हुआ सरीर॥
न तो रीति थी॥
न बना समय विपरीत॥
भ्रमर अधिक आतुर था प्यासा॥
सूझ गयी क्या प्रीति॥
कलया कैसे ढँक गयी॥
रचना रची रंगीन॥
विनय किया हे पवन तुम॥
बह लो मेरे अधीन॥
आज पवन रस बरषे गा॥
आतुल ब्याकुल हीन भ्रमर भीर॥
आय कली में गरजे गा॥

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ग़ज़ल

गज़ब का हुस्नो शबाब देखा ज़मीन पर माहताब देखा खिजां रसीदा चमन में अक्सर खिला-खिला सा गुलाब देखा किसी के रुख पर परीशान गेसू किसी के रुख पर नकाब देखा वो आए मिलने यकीन कर लूँ की मेरी आँखों ने खवाब देखा न देखू रोजे हिसाब या रब ज़मीन पर जितना अजाब देखा मिलेगा इन्साफ कैसे " अलीम" सदकतों पर नकाब देखा