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'दीप '


रातो को सोते से जागी थी
जैसे में अकेली वैसे आसमा पे वो चाँद अकेला सा
ताकता मेरी ओर सा ..निहिर सा
कि कोई ऐसी ही तन्हायियो में दे साथ उसका
गौर से देखा तो ......
चाँद को खुद से बाते करते हुए पाया
वो बोला ...'किस कि यादो का आज तेरे आस पास ये रेला '
मै क्या कहती ?
चुप हो गयी ....लिए आँखों में नीर की धारा..
मै चाँद से बोली ....
'देख लौट आया मेरा प्रीत मुझे देख अकेला '
प्यार का समंदर
विश्वास का प्रतीक है वो
दे का मुझे सुख की अनुभूति
खुद को किया अश्रुओ के हवाले
मुस्कान सौगात बन के मेरे लबो पे रहे
खुदा से दुआ कर वो फिर
मेरे सुने जीवन में बन कर आया आशा की किरण
बीती स्मृतियों के 'दीप ' जला गया वो ....
(..कृति ...अंजु...(अनु )...)

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ग़ज़ल

गज़ब का हुस्नो शबाब देखा ज़मीन पर माहताब देखा खिजां रसीदा चमन में अक्सर खिला-खिला सा गुलाब देखा किसी के रुख पर परीशान गेसू किसी के रुख पर नकाब देखा वो आए मिलने यकीन कर लूँ की मेरी आँखों ने खवाब देखा न देखू रोजे हिसाब या रब ज़मीन पर जितना अजाब देखा मिलेगा इन्साफ कैसे " अलीम" सदकतों पर नकाब देखा