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महफ़िल सजा ली..

जिंदगी जब हंस के बोली॥
राह पर चलता गया मै॥
भूल कर अज्ञान बना न॥
न तो ईर्ष्या द्वेष मन में॥
भाग्य ने धोखा दिया न॥
न तो पथ से भटका मै॥
सब सितारे साथ मिलकर॥
करते है क्या हंसी ठिठोली॥
जीव जंतु मायूस न होते॥
नदिया कलरव कर सुनाती॥
पर्वतो की महिमा निराली॥
प्रिये पवन खूब गीत सुनाती॥
आसमा धरती के मध्य मै॥
एक सही महफ़िल सजा ली॥

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ग़ज़ल

गज़ब का हुस्नो शबाब देखा ज़मीन पर माहताब देखा खिजां रसीदा चमन में अक्सर खिला-खिला सा गुलाब देखा किसी के रुख पर परीशान गेसू किसी के रुख पर नकाब देखा वो आए मिलने यकीन कर लूँ की मेरी आँखों ने खवाब देखा न देखू रोजे हिसाब या रब ज़मीन पर जितना अजाब देखा मिलेगा इन्साफ कैसे " अलीम" सदकतों पर नकाब देखा