खुद चल के समुन्दर आज॥
नदी के पास आया है॥
अपने मन की बात ॥
सलिल सरिता से बताया है॥
कलरव उसके चंचल हो गए॥
कल कल करके बोली॥
शर्मीली कदमो से थम कर॥
प्रेम मगन हो डोली॥
mere aangan me aake॥
saagar muskaayaa है॥
mai poochh sakoo dukh vipdaa kyaa है॥
kyaa koi achambhee बात padi॥
चंचल मन to लग रहे है॥
मोतियों की मानिक जड़ी॥
लगता समय बदल रहा है॥
मन मेरा हर्षाया है॥
हर शब्द बोलता हुआ और दिल को गहराई तक छूता हुआ
ReplyDeleteकाश ऐसा हो की सागर चल के नदी के पास आ पाता!!