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हिन्दुस्तान का एक दर्द यह भी --सबको सिर्फ अपनी पड़ीं है ---


इस खबर को पढ़िए , जनता बड़े ढंग से गुस्सा है रेलवे पर| बस सबको अपनी -अपनी पड़ीं है , किसी को युक्ति-युक्तपूर्ण ढंग से नहीं सोचना है | अखवार वाले समाज के ठेकेदार बने हुए हैं पर दूर की , यथार्थ सोच कहाँ है ? तर्क वास्तविकता देखे जाने सोचे बिना बस अपने स्वार्थ के लिए हुंकार भरदेना, जवाब देही मांगना ( जहां आसानी सेचलती है, गुंडों माफियाओं, छेड़खानी करने वालों के लिए कोइ नहीं भरता )| क्या ये सब नहीं सोचा जा सकता किजब प्रकृति के इतने कठोर मौसम कोहरे ठण्ड के कारण जहां कुछ दिखाई नहीं देता, सारे बेतार के तार , मोबाइल,रेडियो,इन्टरनेट लाइनों का सब कुछ ठप है तो अकेली रलवे क्या करे कोइ क्या करे , आखिर काम तो मनुष्य ही करता है |

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केहि कारण पान फुलात नही॥? केहि कारण पीपल डोलत पाती॥? केहि कारण गुलर गुप्त फूले ॥? केहि कारण धूल उडावत हाथी॥? मुनि श्राप से पान फुलात नही॥ मुनि वास से पीपल डोलत पाती॥ धन लोभ से गुलर गुप्त फूले ॥ हरी के पग को है ढुधत हाथी..

ग़ज़ल

गज़ब का हुस्नो शबाब देखा ज़मीन पर माहताब देखा खिजां रसीदा चमन में अक्सर खिला-खिला सा गुलाब देखा किसी के रुख पर परीशान गेसू किसी के रुख पर नकाब देखा वो आए मिलने यकीन कर लूँ की मेरी आँखों ने खवाब देखा न देखू रोजे हिसाब या रब ज़मीन पर जितना अजाब देखा मिलेगा इन्साफ कैसे " अलीम" सदकतों पर नकाब देखा