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Loksangharsha: प्रजातंत्र पत्ता अ़स हालै...


प्रजातंत्र पत्ता अ़स हालै,सत्ता बंटाधार;
देश का कोई जिम्मेदार
भूखन मरैं करैं हड़तालै , कोई सुनै पुकार;
डंडा -लाठी -गोली, बरसे परै करारी मार;
अत्याचार अनाचारों का,होइगा गरम बाजार;
रोज बने कानून कायदा,नेतन कै भरमार ;
चोरी,डाका,कतल,राहजनी ,कोई रोकनहार ;
दारु- पैसा बांटिक जीते,गुण्डे चला रहे सरकार;
चोर -ड़कैतन की रक्षा मा खड़े हैं ,थानेदार;

वकील-डॉक्टर-शिक्षक ,बालक जेल मा करें विहार;
देश का कोई जिम्मेदार

बृजेश भट्ट बृजेश

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ग़ज़ल

गज़ब का हुस्नो शबाब देखा ज़मीन पर माहताब देखा खिजां रसीदा चमन में अक्सर खिला-खिला सा गुलाब देखा किसी के रुख पर परीशान गेसू किसी के रुख पर नकाब देखा वो आए मिलने यकीन कर लूँ की मेरी आँखों ने खवाब देखा न देखू रोजे हिसाब या रब ज़मीन पर जितना अजाब देखा मिलेगा इन्साफ कैसे " अलीम" सदकतों पर नकाब देखा