चार चाँद लगे उस लेखक के लेखनी को। जिसने चकोर बन कर ढूढा मेरी निशानी। हर साजो से सजा कर समेटा अपनी बाहों में। मेरी सूरत को गढ़ के लिखा है क्या कहानी॥ उस निशानी को देख लिया । जिसे आप तक मैंने देखा नही॥ आती है रचना रचनी पल भर में लिख दिया सही॥ हर अंग की बाखूबी निहारा अलंकृत कर दी भेष भूषा। आँखों में सिर्फ़ मैकोई नही था दूजा॥ अब मै भी करनी लगी हूँ उसकी पूजा॥
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--- संजय सेन सागर