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पुजारिन

चार चाँद लगे उस लेखक के लेखनी को। जिसने चकोर बन कर ढूढा मेरी निशानी। हर साजो से सजा कर समेटा अपनी बाहों में। मेरी सूरत को गढ़ के लिखा है क्या कहानी॥ उस निशानी को देख लिया । जिसे आप तक मैंने देखा नही॥ आती है रचना रचनी पल भर में लिख दिया सही॥ हर अंग की बाखूबी निहारा अलंकृत कर दी भेष भूषा। आँखों में सिर्फ़ मैकोई नही था दूजा॥ अब मै भी करनी लगी हूँ उसकी पूजा॥

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हाथी धूल क्यो उडाती है?

केहि कारण पान फुलात नही॥? केहि कारण पीपल डोलत पाती॥? केहि कारण गुलर गुप्त फूले ॥? केहि कारण धूल उडावत हाथी॥? मुनि श्राप से पान फुलात नही॥ मुनि वास से पीपल डोलत पाती॥ धन लोभ से गुलर गुप्त फूले ॥ हरी के पग को है ढुधत हाथी..

ग़ज़ल

गज़ब का हुस्नो शबाब देखा ज़मीन पर माहताब देखा खिजां रसीदा चमन में अक्सर खिला-खिला सा गुलाब देखा किसी के रुख पर परीशान गेसू किसी के रुख पर नकाब देखा वो आए मिलने यकीन कर लूँ की मेरी आँखों ने खवाब देखा न देखू रोजे हिसाब या रब ज़मीन पर जितना अजाब देखा मिलेगा इन्साफ कैसे " अलीम" सदकतों पर नकाब देखा