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रोवायी आवय सजना..

जब से मेला मा आँख लड़ी॥
आवय न अवघायी॥
रोवायी आवय सजना॥
दस दाई जब तक न देखी॥
आवय नही हंसायी॥
बोलिया मा दोहरे जादू घोला॥
बनके लाग कलायी॥
कब होए हमसे मिलायी..
रोवायी आवय सजना॥
जब तक मुह से मधुर न बोला॥
कय डाई उपवास॥
जब तू हमारी मांग सजौवेया॥
लिखा जायी इतिहास॥
अब ढील करा आपन ठिठाई ॥
रोवायी आवय सजना॥

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गज़ब का हुस्नो शबाब देखा ज़मीन पर माहताब देखा खिजां रसीदा चमन में अक्सर खिला-खिला सा गुलाब देखा किसी के रुख पर परीशान गेसू किसी के रुख पर नकाब देखा वो आए मिलने यकीन कर लूँ की मेरी आँखों ने खवाब देखा न देखू रोजे हिसाब या रब ज़मीन पर जितना अजाब देखा मिलेगा इन्साफ कैसे " अलीम" सदकतों पर नकाब देखा