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माई मस्त्रीन बन के बैठी..

नाक्ष्त्रावली पैदा भा बेटवा॥
बाप बना प्रधान॥
माई मास्ट्रें बन के बैठी॥
अब जल्दी बनिहय धनवान॥
चाचा का चौराहे पे॥
राशन कय दूकान हहाय॥
कर्मठ गठिगा परिवारं कय॥
अब टुटही पनही नही देखात॥
आजी के बतिया मा ऊ दम नाही॥
बात से काटे कैची॥
माई मस्त्रैन बन के बैठी॥
बुआ बिलायत पढे जात बा॥
चाहि कराय जब शूटिंग॥
अबकी प्रधानी मा पता चले जब॥
जनता करिहै हूटिंग॥
बंधी दुआरे चोक्दत बाटे॥
घुघुर वाली भैसी॥
माई मास्त्रीन बन बैठी॥

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ग़ज़ल

गज़ब का हुस्नो शबाब देखा ज़मीन पर माहताब देखा खिजां रसीदा चमन में अक्सर खिला-खिला सा गुलाब देखा किसी के रुख पर परीशान गेसू किसी के रुख पर नकाब देखा वो आए मिलने यकीन कर लूँ की मेरी आँखों ने खवाब देखा न देखू रोजे हिसाब या रब ज़मीन पर जितना अजाब देखा मिलेगा इन्साफ कैसे " अलीम" सदकतों पर नकाब देखा