Skip to main content

बलामुवा काहे गया परदेश॥

बलामुवा काहे गया परदेश॥
बलामुवा काहे गया परदेश॥
बैरी कोयलिया ताना मारे॥
छोड़ के आपन देश ॥
बलामुवा काहे गया परदेश॥
पशु पक्षी भी हमें चिढावे॥
सासु ननदिया आँख दिखावे॥
इनके बोली तिताऊ लागे॥
ससुरा बदले भेष ॥
बलामुवा काहे गया परदेश॥
उठ भिनौखा बर्तन धोई॥
सपरय नाही काम॥
यह चिक चिक मा बूढी हो गइली॥
कब ई कटे कलेश ॥ बलामुवा काहे गया परदेश॥

Comments

Popular posts from this blog

हाथी धूल क्यो उडाती है?

केहि कारण पान फुलात नही॥? केहि कारण पीपल डोलत पाती॥? केहि कारण गुलर गुप्त फूले ॥? केहि कारण धूल उडावत हाथी॥? मुनि श्राप से पान फुलात नही॥ मुनि वास से पीपल डोलत पाती॥ धन लोभ से गुलर गुप्त फूले ॥ हरी के पग को है ढुधत हाथी..

ग़ज़ल

गज़ब का हुस्नो शबाब देखा ज़मीन पर माहताब देखा खिजां रसीदा चमन में अक्सर खिला-खिला सा गुलाब देखा किसी के रुख पर परीशान गेसू किसी के रुख पर नकाब देखा वो आए मिलने यकीन कर लूँ की मेरी आँखों ने खवाब देखा न देखू रोजे हिसाब या रब ज़मीन पर जितना अजाब देखा मिलेगा इन्साफ कैसे " अलीम" सदकतों पर नकाब देखा