हर नदिया का पानी धूमिल॥
हर पवन वेग में छाले है॥
हर दिल में लालच बसती॥
अब के मनुष्य निराले है॥
मधुर वचन से दस लेते है॥
पर कट जाते है राही के॥
मैसमझ न पाया जीवन लय को॥
मन ढूढ़ रहा हम राही को॥
हर पवन वेग में छाले है॥
हर दिल में लालच बसती॥
अब के मनुष्य निराले है॥
मधुर वचन से दस लेते है॥
पर कट जाते है राही के॥
मैसमझ न पाया जीवन लय को॥
मन ढूढ़ रहा हम राही को॥
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आपका बहुत - बहुत शुक्रिया जो आप यहाँ आए और अपनी राय दी,हम आपसे आशा करते है की आप आगे भी अपनी राय से हमे अवगत कराते रहेंगे!!
--- संजय सेन सागर