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अब नयी उमंगें जाग गयी ॥

अब नयी उमंगें जाग गयी ॥
भ्रष्ट कपोलो की पंखुडिया॥
फ़िर धरती से भाग गयी॥
सब समझ गए है रूप तुम्हारा॥
कितना है भय भीत॥
सादे कुरते में छुपा के रखते॥
बेईमानी की भीत॥
तेरे बोली पर अब बंधू॥
सच्चाई की चाबी लग गयी॥

तोड़ फोड़ करवा देते हो॥
जूता बाज़ी सभा में होती॥
खा गए जनता का हिस्सा॥
फ़िर पड़ती रकम है छोटी॥
ग़लत राह पे खड़े हुए हो॥
क्या जीवन में घाट भयी॥

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ग़ज़ल

गज़ब का हुस्नो शबाब देखा ज़मीन पर माहताब देखा खिजां रसीदा चमन में अक्सर खिला-खिला सा गुलाब देखा किसी के रुख पर परीशान गेसू किसी के रुख पर नकाब देखा वो आए मिलने यकीन कर लूँ की मेरी आँखों ने खवाब देखा न देखू रोजे हिसाब या रब ज़मीन पर जितना अजाब देखा मिलेगा इन्साफ कैसे " अलीम" सदकतों पर नकाब देखा