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"दुःख थे पर्वत, राई अम्मा; हारी नहीं लड़ाई अम्मा ।" - इस ग़ज़ल को पूरा कीजिये।

मित्रों,

हमारे सहारनपुर के गौरव, हम सब के दुलारे कवि और मेरे प्रिय सखा श्री योगेश छिब्बर ने अपनी नवीनतम रचना मुझे एस.एम.एस. द्वारा भेजी है -

लेती नहीं दवाई अम्मा,

जोड़े पाई-पाई अम्मा ।

(पूरी ग़ज़ल यहां उपलब्ध है - www.thesaharanpur.com/amma.html ) प्रो. छिब्बर का और अधिक परिचय - www.thesaharanpur.com/chhibber.html लिंक पर उपलब्ध है।

प्रो. छिब्बर ने यह भी आह्वान किया कि मैं भी अपनी अम्मा के प्रति अपनी भावनाओं को अभिव्यक्ति देते हुए कुछ पंक्तियां लिखूं और इस ग़ज़ल को आगे बढ़ाऊं । गीत, कवितायें और ग़ज़ल लिखना अपने बूते की बात नहीं पर घोर आश्चर्य ! जब अपनी अम्मा की छवि सामने रख कर गुनगुनाना शुरु किया तो कुछ पंक्तियां कागज़ पर उतर आईं।

आप भी तो अपनी अम्मा के बारे में कुछ कोमल भावनायें अपने हृदय में रखते होंगे /रखती होंगी ? देश के हर बच्चे से हमारा आह्वान है कि अपनी अम्मा की छवि दस मिनट अपनी आंखों में बसा कर, इस गज़ल को गुनगुनाते हुए इसे और आगे बढ़ायें। यह हम सब बच्चों की ओर से हमारी प्यारी अम्मा को प्यार और श्रद्धा से परिपूरित समर्पण होगा ।

ध्यान रखें, यह कोई गीत-गज़ल प्रतियोगिता नहीं हो रही है, जो भी लिखें, जैसा भी लिख पायें, , ४ या ६ जितनी भी पंक्ति लिखें, अवश्य ही लिखें और हमें प्रेषित कर दें। आपकी पंक्तियां आपके नाम से उक्त पृष्ठ पर जुड़ती चली जायेंगी ।

सादर, सस्नेह,

आपका ही,

सुशान्त सिंहल

संस्थापक एवं संपादक

www.thesaharanpur.com

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ग़ज़ल

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