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अशार

क्यो हमसे है वो खफा आजकल
उनसे मोहब्बत हुए ज़माना बीत गया ।
उनके उन्ही अदाओं पर मैं सदके जाऊं
महज़ यह लफ्ज़ अब एक फ़साना बन गया ।
लाख कोशिशों के उनकी चाहते खफगी के बाद
अब फिर चाहना उनको मेरा हौसला बना गया ।
ए खुदा फिर कभी ऐसे मोहब्बत का इम्तिहान मत ले
अब इश्क पर फौत होना मेरा ईमान बन गया ।
अब न होगा किसी और को शामिल अलीम
यह मेरी पुरी ज़िन्दगी का अहद बन गया ।

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ग़ज़ल

गज़ब का हुस्नो शबाब देखा ज़मीन पर माहताब देखा खिजां रसीदा चमन में अक्सर खिला-खिला सा गुलाब देखा किसी के रुख पर परीशान गेसू किसी के रुख पर नकाब देखा वो आए मिलने यकीन कर लूँ की मेरी आँखों ने खवाब देखा न देखू रोजे हिसाब या रब ज़मीन पर जितना अजाब देखा मिलेगा इन्साफ कैसे " अलीम" सदकतों पर नकाब देखा