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कुछ काम करो...

चमकते चारो ने हंस के बोला ..हे मेरे प्रिय के वंशज उठो..तुम हमारे से ज्यादा इस धरा पर प्रकाश फैलाओ । जिससे तुम्हे यश प्राप्त हो॥ तुम यशश्वी हो ,संघर्ष शील हो॥ विवेकी हो,, बुद्धिमान हो। तुम चाहो तो आकाश को छू लो॥ तुम चाहो तो पाताल का पता लगा लो॥ तुम चाहो तो समुन्द्र की गहराई को नाप लो ॥ तुम चाहो तो मानव के मन को भाप लो॥ तुम चाहो तो नए नए आविष्कार कर सकते हो॥ क्यो की तुम्हारे अन्दर वे समस्त शक्तिया है । जो हमारे अन्दर नही है। हम केवल शाम से लेकर सुबह तक ही प्रकाश फैला सकते है। हमारी शक्तिया वही तक सिमित है । लेकिन तुम असीमित हो ॥ उठो इस धरा पर अपना नाम और अपने पूर्वजो का मान रोशन करो॥
तुम मानव वंश के वंशज हो॥
यश फैलाओ जहा में सारे॥
सारी खुशिया चूमे गी तुमको॥
तुम हो देवी दो को प्यारे॥
तुम्हे शक्तिया दान मिली है॥
उसका तुम उपयोग करो॥
अपनी प्यारी धरती माँ के॥
सीने पर मुस्कान भरो॥
तेरे मन की उत्कंठा ॥
जीवन भर जीने से हर्षित हो॥

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आपका बहुत - बहुत शुक्रिया जो आप यहाँ आए और अपनी राय दी,हम आपसे आशा करते है की आप आगे भी अपनी राय से हमे अवगत कराते रहेंगे!!
--- संजय सेन सागर

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ग़ज़ल

गज़ब का हुस्नो शबाब देखा ज़मीन पर माहताब देखा खिजां रसीदा चमन में अक्सर खिला-खिला सा गुलाब देखा किसी के रुख पर परीशान गेसू किसी के रुख पर नकाब देखा वो आए मिलने यकीन कर लूँ की मेरी आँखों ने खवाब देखा न देखू रोजे हिसाब या रब ज़मीन पर जितना अजाब देखा मिलेगा इन्साफ कैसे " अलीम" सदकतों पर नकाब देखा