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ग़ज़ल

किया है प्यार हमने ज़िन्दगी की तरह
वोह आशना भी मिला हम से अजनबी की तरह ।
सितम तो यह है वो भी न बन सका अपना
कुबूल हमने किए जिसके गम खुशी की तरह।
बढ़ा के प्यास मेरी उसने हाथ छोड़ दिया
वोह कर रहा था मुरव्वत दिल्लगी की तरह।
कभी न सोचा था हमने "अलीम" उसके लिए
करेगी वोह सितम हम पे हर किसी की तरह।

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हाथी धूल क्यो उडाती है?

केहि कारण पान फुलात नही॥? केहि कारण पीपल डोलत पाती॥? केहि कारण गुलर गुप्त फूले ॥? केहि कारण धूल उडावत हाथी॥? मुनि श्राप से पान फुलात नही॥ मुनि वास से पीपल डोलत पाती॥ धन लोभ से गुलर गुप्त फूले ॥ हरी के पग को है ढुधत हाथी..

ग़ज़ल

गज़ब का हुस्नो शबाब देखा ज़मीन पर माहताब देखा खिजां रसीदा चमन में अक्सर खिला-खिला सा गुलाब देखा किसी के रुख पर परीशान गेसू किसी के रुख पर नकाब देखा वो आए मिलने यकीन कर लूँ की मेरी आँखों ने खवाब देखा न देखू रोजे हिसाब या रब ज़मीन पर जितना अजाब देखा मिलेगा इन्साफ कैसे " अलीम" सदकतों पर नकाब देखा