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आतंक का साया..

मुद्दत के बाद मुल्क में॥
फ़िर से बहार आयी॥
अद्भुत नजारा देख कर॥
पगली भी मुस्कुराई॥
खौफ बसा यहाँ था॥
खूखार लोग आते थे॥
हया दया न करते॥
आतंक बहुत फैलाते थे॥
चादर के अन्दर लोग यहाँ॥
तेरे थे जमुहाई॥
कुत्ते भी मूक बन कर॥
कोने में रोते थे॥
बच्चे बिचारे सहम कर॥
छुप करके के सोते थे॥
उनके दिलो में हमने॥
देखा केवल ठिठाई॥

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ग़ज़ल

गज़ब का हुस्नो शबाब देखा ज़मीन पर माहताब देखा खिजां रसीदा चमन में अक्सर खिला-खिला सा गुलाब देखा किसी के रुख पर परीशान गेसू किसी के रुख पर नकाब देखा वो आए मिलने यकीन कर लूँ की मेरी आँखों ने खवाब देखा न देखू रोजे हिसाब या रब ज़मीन पर जितना अजाब देखा मिलेगा इन्साफ कैसे " अलीम" सदकतों पर नकाब देखा