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रूप वती

चितवन तेरी मार गयी॥
कंगाल बना गयी अरब पति को॥
सागर जैसी ममता को छोडा॥
ढूढ़ रहा हूँ नैन वती को॥
कोई कमी नही थी हमको॥
जो मांगू सो आता था॥
ऐसा तीर चलायी मुझपर॥
जो टाक tआक रहा हूँ॥
प्यार कली को॥
चेहरा बिल्कुल पीला पड़ गया॥
तन में बिल्कुल नही है जान॥
दिल तो बिल्कुल टूट गया है॥
लगता पागल केवल अनजान॥
इधर उधर मई ताक़ रहा hoo।
हेर रहा हूँ रूप वती को॥

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ग़ज़ल

गज़ब का हुस्नो शबाब देखा ज़मीन पर माहताब देखा खिजां रसीदा चमन में अक्सर खिला-खिला सा गुलाब देखा किसी के रुख पर परीशान गेसू किसी के रुख पर नकाब देखा वो आए मिलने यकीन कर लूँ की मेरी आँखों ने खवाब देखा न देखू रोजे हिसाब या रब ज़मीन पर जितना अजाब देखा मिलेगा इन्साफ कैसे " अलीम" सदकतों पर नकाब देखा