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अत्याचारी का अंत होगा..

हे प्रभा तुम बनो भयानक॥
नदिया दल दल बन जायेगी॥
पवन प्रलय कर देगी पल को॥
रितुये चिता जलायेगी॥
अब बचेगा न वह अत्याचारी॥
तब नगर बधू मंगल गायेगी॥
महाकाल लीलेगा उसको॥
पटक शिला पर फाड़े गा टांग॥
तब कोयल मधुर गीत बोलेगी॥
डरे हुए मानव अब जाग॥
गया अधर्मी छोड़ धरा को॥
नगर में पुरुवा फ़िर डोलेगी॥

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केहि कारण पान फुलात नही॥? केहि कारण पीपल डोलत पाती॥? केहि कारण गुलर गुप्त फूले ॥? केहि कारण धूल उडावत हाथी॥? मुनि श्राप से पान फुलात नही॥ मुनि वास से पीपल डोलत पाती॥ धन लोभ से गुलर गुप्त फूले ॥ हरी के पग को है ढुधत हाथी..

ग़ज़ल

गज़ब का हुस्नो शबाब देखा ज़मीन पर माहताब देखा खिजां रसीदा चमन में अक्सर खिला-खिला सा गुलाब देखा किसी के रुख पर परीशान गेसू किसी के रुख पर नकाब देखा वो आए मिलने यकीन कर लूँ की मेरी आँखों ने खवाब देखा न देखू रोजे हिसाब या रब ज़मीन पर जितना अजाब देखा मिलेगा इन्साफ कैसे " अलीम" सदकतों पर नकाब देखा